
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम् ।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम् ।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम् ।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः ।।
-भगवान श्री कृष्ण
परिचय
भगवद् गीता एक ऐसा शाश्वत ग्रंथ है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर राह दिखाता है और जीवन जीने की सही मार्ग दर्शन कराता है।
श्रीमद्भागवद्गीता (Bhagwat Geeta) की ज्ञान सागर किसी व्यक्ति, जाति, सम्प्रदाय आदि विशेष के लिए नहीं परन्तु संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए पूरे मानवता का ज्ञान है। Bhagavad Gita Shlokas with Meaning हमें जीवन जीने का सच्चा मार्ग दिखाते हैं। इसमें दिए गए श्लोक हमारे रोज़मर्रा के जीवन के लिए ज़रूरी सीख हैं। Bhagavad Gita में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। जो मनुष्य को श्रेष्ठ, निरोगी, आनंदमय और सम्मानपूर्ण जीवन प्रदान करते हैं।
भगवद गीता जीवन का शाश्वत मार्गदर्शन देती है। जैसे Gayatri Mantra Benefits in Daily Life हमें सकारात्मक ऊर्जा और दिव्य शक्ति प्रदान करता है, वैसे ही गीता के श्लोक हमारे जीवन को संतुलन और शांति की ओर ले जाते हैं।
हम 10 ऐसे Bhagavad Gita Slokas with Meaning उनके साधारण और सहज अर्थों के साथ इस लेख में पेश कर रहे हैं। जो सच में आपके जीवन को एक नई दिशा की ओर ले जा सकता हैं।
“पूरी गीता पढ़ने के लिए आप Bhagavad Gita As It Is (ISKCON) देख सकते हैं।”
Top 10 Bhagavad Gita Shlokas with Meaning (10 भगवद गीता श्लोक अर्थ सहित):
1. कर्मण्येवाधिकारस्ते
श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 47):
“कर्मण्ये वाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन, मा कर्म फल हेतुर्भूर, मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।”
अर्थ है –
आपको अपने कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म के फल को नियंत्रित करने का नहीं। अपने कर्मों के फल को कभी भी अपना उद्देश्य न बनाएँ, अर्थात कर्म को फल के लिए मत करो और न ही निष्क्रियता के आगे झुकें।
👉 सीख: अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करें, न कि परिणामों पर।
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों पर कभी नहीं।
“बिना फल की इच्छा के कर्म करना ही सच्चा धर्म है। यही शिक्षा हमें मंत्रजप से भी मिलती है। Power of Mantras in Daily Life ब्लॉग में हमने विस्तार से बताया है कि मंत्र किस तरह मन और जीवन को सकारात्मक बनाते हैं।”
2. आत्मा अमर है
श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 20):
“न जायते मृयते वा कदाचिन…”
अर्थ:
आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही कभी मृत्यु होती है। शरीर का तो मृत्यु हो जाता हैं लेकिन आत्मा का नहीं। यह शाश्वत, चिरस्थायी और विनाश से परे है।
👉 सीख: डर और शोक मिटाने का उपाय है आत्मा की अमरता को पहचानना।
“गीता के अध्याय 2 में श्रीकृष्ण ने आत्मा की अमरता को समझाया है (Vedabase Reference)।”
3. स्थिर बुद्धि (समता)
श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 48):
“योगस्थः कुरु कर्माणि, सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय, सिद्धि-असिद्ध्योः समो भूत्वा, समत्वं योग उच्यते।”
अर्थ:
आसक्ति का त्याग करके, सफलता या असफलता का मोह छोड़कर समभाव से अपना कर्तव्य निभाओ। ऐसे संतुलन को ही योग कहा जाता है।
👉 सीख: सफलता मिले या असफलता – शांत और स्थिर रहें।
4. मन का नियंत्रण
श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 6):
“बन्धुर् आत्मात्मानस तस्य, येनात्मैवात्मन जितः…”
अर्थ:
जो इंसान अपने मन को काबू में कर लेता है, उसका मन उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है। लेकिन जो ऐसा करने में असफल रहा है, उसके लिए वही मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।
👉 सीख: मन आपको नियंत्रित करने से पहले ही आप उसे नियंत्रित कर लें।
5. क्रोध और काम से सावधान
श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 37):
“काम एषा क्रोध एषा रजो-गुण-समुद्भवः…”
अर्थ:
काम और क्रोध दोनों रजोगुण से उत्पन्न होते हैं। वासना से उत्पन्न इच्छा और क्रोध ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं।
👉 सीख: इच्छाओं और क्रोध पर विजय ही आत्मिक शांति का मार्ग है।
6. आत्मसंयम ही योग है
श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 5):
“उद्धरेद आत्मनात्मानं, नात्मानं अवसादयेत…”
अर्थ:
मनुष्य को अपने मन के बल से खुद को ऊँचा उठाना चाहिए, न कि खुद को नीचा दिखाना चाहिए, अपने मन से स्वयं का उत्थान करना चाहिए, न कि स्वयं को नीचा दिखाना चाहिए। क्योंकि मन ही मित्र और शत्रु दोनों है।
👉 सीख: अपने जीवन के निर्माता बनो, विध्वंसक नहीं।
7. भगवान हर जगह हैं
श्लोक (अध्याय 9, श्लोक 22):
“अनन्याश चिन्तयन्तो माम्, ये जनाः पर्युपासते…”
अर्थ:
जो लोग अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हैं और मेरी उपासना करते हैं, मैं उसकी रक्षा करता हूँ और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करता हूँ।
👉 सीख: भगवान पर श्रद्धा और भरोसा रखो, जीवन में शांति अपने आप आ जाएगी।
8. निस्वार्थ भाव से सेवा
श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 19):
“तस्माद् असक्तः सततं, कार्यं कर्म समाचार…”
अर्थ:
अतः, सदैव आसक्ति रहित होकर अपना कर्तव्य करो। निःस्वार्थ भाव से कर्म करने से मनुष्य परम मुक्ति प्राप्त करता है।
👉 सीख: निष्काम भाव से किया गया कार्य ही मुक्ति का साधन है।
9. सभी को एक जैसा देखना
श्लोक (अध्याय 5, श्लोक 18):
“विद्या-विनय-सम्पन्ने, ब्राह्मणे गवि हस्तिनी, शुनि चैव शव-पाके च, पंडिता: सम-दर्शिन:।”
अर्थ:
जो व्यक्ति ज्ञान (विद्या) और विनम्रता (विनय) से परिपूर्ण है। वो सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखते हैं – चाहे वह ब्राह्मण हो, गाय हो, हाथी हो, कुत्ता हो या चांडाल (श्वपांक) हो।
👉 सीख: सच्चा ज्ञान समानता में है।
10. हर समय भगवान को याद करो
श्लोक (अध्याय 8, श्लोक 7):
“तस्मात् सर्वेषु कालेषु, माम अनुस्मार युद्ध च…”
अर्थ:
इसलिए सदैव मुझे स्मरण करो और अपना कर्तव्य करो। अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण करके, बिना किसी संदेह के, केवल मुझे ही तुम प्राप्त करोगे।
👉 सीख: ईश्वर का स्मरण हर परिस्थिति में साहस और शक्ति प्रदान करता है।
निष्कर्ष के तौर पर
भगवद्गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन की व्यावहारिक समस्याओं को हल करने वाली एक उत्कृष्ट जीवन- निर्देशिका है।
इस Bhagavad Gita Shlokas with Meaning हमें सिखाते हैं कि कैसे संतुलन, अनुशासन, निस्वार्थ भाव और भक्ति के साथ जीवन जिया जाए।
अगर आप इनमें से किसी एक को भी अपने दैनिक जीवन में लागू करना शुरू कर दें, तो आप अपने अंदर एक शक्तिशाली परिवर्तन देख पाएंगे।
“गीता के ये श्लोक हमें हर दिन बेहतर बनाने की प्रेरणा देते हैं। अगर आप इन्हें अपने रविवार की शुरुआत के साथ जोड़ना चाहते हैं, तो Sunday Motivation Tips: Stress-Free Life के 5 आसान Secrets ज़रूर पढ़ें।”
यदि आप गीता का विस्तार से अध्ययन करना चाहते हैं तो Sacred Texts Bhagavad Gita पर पढ़ सकते हैं।